अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधित अधिनियम (2018) में FIR दर्ज करने के लिये प्रारंभिक जाँच ज़रूरी नहीं है
एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जिसे SC/ST एक्ट भी कहा जाता है, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार को रोकने के लिए बनाया गया एक भारतीय कानून है.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति संशोधित अधिनियम (2018) में प्रारंभिक जाँच ज़रूरी नहीं है और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति पर अत्याचार के मामलों में FIR दर्ज करने के लिये जाँच अधिकारियों को अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की पूर्व मंजूरी की भी आवश्यकता नहीं है।
- इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को अत्याचार से बचाना और उन्हें न्याय दिलाना है.
- अधिनियम का नाम:अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989.
- यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, 17 और 21 में उल्लिखित संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया है.
- इन कमजोर समुदायों के सदस्यों की सुरक्षा करना तथा जाति आधारित अत्याचारों के पीड़ितों को अनुतोष और पुनर्वास प्रदान करना.
- यह धारा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को जानबूझकर सार्वजनिक रूप से अपमानित करने के इरादे से डराने-धमकाने से संबंधित है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर अपमान या धमकी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के तहत अपराध नहीं होगी.
- अधिनियम के तहत अपराध:
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार करना.
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ भेदभाव करना.
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का उत्पीड़न करना.
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को जानबूझकर अपमानित करना.
- अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को धमकी देना.
- अधिनियम के तहत सजा:
- इस अधिनियम के तहत अपराध करने पर सजा का प्रावधान है.
- अधिनियम के तहत कम से कम 6 महीने या अधिकतम 5 साल तक की सजा हो सकती है.
- स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
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