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Showing posts from October, 2025

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वेश्यावृत्ति से उत्पन्न बच्चों का अधिकार गौरव जैन बनाम UOI : AIBE 20 विशेषांक

 गौरव जैन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Gaurav Jain v. Union of India) एक सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण मामला है, जिसमें वेश्याओं के बच्चों और बाल वेश्याओं के अधिकारों और पुनर्वास को लेकर पीआईएल (जनहित याचिका) दायर की गई थी। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेश्याओं के बच्चे भी समाज के मुख्य धारा का हिस्सा हैं और उन्हें बिना किसी कलंक के सामाजिक जीवन में समान अवसर, गरिमा, देखभाल, और संरक्षण का अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वेश्याओं के बच्चों को उनकी पहचान और उत्पत्ति के कारण अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, उनका पुनर्वास और बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए। कोर्ट ने मामले में एक समिति गठित करने और पुनर्वास तथा सामाजिक समावेशन के लिए नियमित रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। यह मामला 1997 में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुआ था, और इस निर्णयन से वेश्याओं के बच्चों को समाज में समान दर्जा मिलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई। न्यायालय ने इस मुद्दे पर गहरी संवेदनशीलता दिखाते हुए कहा कि समाज जिम्मेदार है कि वह ऐसे बच्चों को सामाजिक बहिष्कार से बचाए और उनक...

Passive ईच्छा मृत्यु, कॉमन कॉस vs UOI : AIBE 20 विशेषांक

  कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Common Cause vs Union of India) एक सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण मामला है जो मुख्य रूप से "जीवन के अधिकार" (Article 21) के अंतर्गत "गौरव के साथ मरने का अधिकार" या "डिग्निटी के साथ मृत्यु का अधिकार" (right to die with dignity) से संबंधित है।  इस मामले में, पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) 2005 में दायर की गई थी, जिसमें कॉमन कॉज नामक संस्था ने दलील दी कि जीवन के अधिकार के साथ-साथ मृत्यु के अधिकार को भी संविधान में सुरक्षित किया जाना चाहिए। वे चाहते थे कि "Living Will" या एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव (Advanced Medical Directive) को वैध माना जाए, जिससे कोई टर्मिनली बीमार मरीज अपनी अंतिम इच्छाओं को लिखित रूप में व्यक्त कर सके कि वह जीवन-रक्षक उपकरणों या अनावश्यक चिकित्सा सहायता से मुक्त रहना चाहता है।  2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला दिया कि "जीवन के अधिकार" के तहत "डिग्निटी के साथ मृत्यु का अधिकार" भी शामिल है। कोर्ट ने इस अधिकार को मान्यता देते हुए गाइडलाइंस जारी कीं, जिनमें पेसिव युथनेशिया ...

Missing Children बचपन बचाओ आंदोलन vs भारत संघ : AIBE 20 विशेषांक

 बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ सुप्रीम कोर्ट का एक प्रमुख जनहित याचिका (PIL) मामला है, जिसमें भारत में बाल अधिकारों के संरक्षण, बाल श्रम विरोधी कानूनों के कड़ाई से पालन, बाल तस्करी, बाल शोषण और बाल मजदूरी को समाप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देशित किया गया। इस मामले में बचपन बचाओ आंदोलन (Bachpan Bachao Andolan), जो कि एक एनजीओ है, ने बच्चों के प्रति इन अत्याचारों को उजागर करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कार्रवाई की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बाल अधिकारों की रक्षा को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), अनुच्छेद 24 (14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक उद्योगों में काम करने से रोक), और अनुच्छेद 39 (e) तथा (f) के तहत राज्य की जिम्मेदारी माना। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, और सम्मान सहित सभी मूलभूत अधिकारों का संरक्षण मिलना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिए कि वे बाल श्रम और बाल तस्करी के खिलाफ प्रभावी कदम उठाएं, बाल संरक्षण समितियाँ सक्रिय करें, बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाएं और लागू करें। कोर्ट ने...

Acid attack लक्ष्मी vs भारत संघ 2013 : AIBE 20 विशेषांक

लक्ष्मी बनाम भारत संघ एक सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक मामला है, जो मुख्यतः एसिड अटैक पीड़ितों के अधिकारों और सुरक्षा से संबंधित है । लक्ष्मी नामक एक युवा लड़की पर 2005 में क्रूर एसिड हमला हुआ था, जिसके बाद उसने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। इस केस के कारण कोर्ट ने एसिड की बिक्री पर सख्त नियम और नियंत्रण लागू किए, साथ ही पीड़ितों के बेहतर इलाज और मुआवजे के प्रावधानों को सुनिश्चित किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक को हत्या के प्रयास जैसा गंभीर अपराध माना और दोषियों को कड़ी सजा का आदेश दिया। साथ ही, एसिड खरीदने वालों के लिए कड़ी शर्तें लगाई गईं, जिससे बिना उचित कारण एसिड की खरीद पर नियंत्रण हो सके। कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे पीड़ितों को पुनर्वास, मानसिक चिकित्सा और अन्य सहायता उपलब्ध कराने के लिए प्रभावी कदम उठाएं। इस फैसला ने न केवल एसिड अटैक पीड़ितों के अधिकारों को सशक्त किया, बल्कि भारत में सार्वजनिक सुरक्षा कानूनों और अपराध नियंत्रण के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया। लक्ष्मी बनाम भारत संघ का न्यायिक निर्णय सामाजि...

Re Noice Free Pollution case : AIBE 20 विशेषांक

 भारत में "In re Noise Pollution Case" एक सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला है, जिसमें कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जम्हाई, बढ़ी आवाज़, लाउडस्पीकर इत्यादि से उत्पन्न शोर प्रदूषण भी जीवन के अधिकार के उल्लंघन के समान है। इस मामले में कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत "प्रदूषणमुक्त और शांतिपूर्ण जीवन" का अधिकार मान्यता दी, जिसमें शोर प्रदूषण होना भी जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालता है।  फैसले में कोर्ट ने 10 बजे रात से 6 बजे सुबह तक के समय में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया और धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजनों में शोर के स्तर को नियंत्रित करने संबंधी सख्त नियम बनाए। कोर्ट ने सरकारी एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे शोर प्रदूषण नियंत्रण नियमों का पालन कराएं और आम जनता के स्वास्थ्य और आराम को प्राथमिकता दें।  इस निर्णय ने भारत में शोर प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए कानूनी आधार स्थापित किया और यह बताया कि सार्वजनिक शोर प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह एक नागरिक के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार का उल्लंघन भी है। इस केस के प्रसंग में कोर्ट ने सरक...

Right to Pollution free Environment सुभाष कुमार vs State of Bihar : AIBE 20 विशेषांक

 सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) भारत का एक महत्वपूर्ण पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सुप्रीम कोर्ट केस है। इसमें याचिकाकर्ता सुभाष कुमार ने आरोप लगाया कि बिहार राज्य के पास स्थित दो औद्योगिक कारखाने (वेस्ट बोकारो कोलियरीज और टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी) ने आसपास के जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है, जिससे लोग साफ पानी के अभाव में हैं और उनका जीवन प्रभावित हो रहा है।  सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इस अधिकार में स्वच्छ जल तथा प्रदूषण मुक्त हवा का अधिकार भी सम्मिलित है। कोर्ट ने माना कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है और राज्य तथा औद्योगिक संस्थाओं को इस दिशा में जिम्मेदार और सतर्क होना चाहिए। यह केस पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसने जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से पर्यावरणीय अधिकारों की रक्षा को संवैधानिक रूप दिया तथा प्रदूषण नियंत्रण के लिए न्यायालय की सक्रिय भूमिका स्थापित की। साथ ही राज्य और उद्योगों को पर्यावरणीय संरक्ष...

गिरफ्तारी के दिशानिर्देश डी के बसु vs State of बंगाल : AIBE 20 विशेषांक

डी के बसु बनाम राज्य बंगाल (D.K. Basu vs State of West Bengal) एक landmark सुप्रीम कोर्ट मामला है जो पुलिस हिरासत में हुई हिंसा और कस्टोडियल उत्पीड़न (custodial violence) के खिलाफ केंद्रित है। इस मामले की शुरुआत 1986 में डी के बसु ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को एक पत्र भेजा था जिसमें पुलिस हिरासत में उत्पीड़न और मौतों की बढ़ती घटनाओं को उजागर किया गया था। इस पत्र को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका के रूप में माना और इस पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुलिस हिरासत के दौरान गिरफ्तारी और हिरासत के नियमों की अनिवार्य रूप से पालन करने हेतु 11 दिशानिर्देश (guidelines) जारी किए, जिनका उद्देश्य हिरासत में रखे गए व्यक्ति के मानवाधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की रक्षा करना था। इनमें शामिल थे: - गिरफ्तारी के समय व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारण की जानकारी तुरंत और उसकी समझ में आने वाली भाषा में दी जाए। - गिरफ्तारी के बाद पुलिस रजिस्टर में रिकॉर्ड किया जाए। - गिरफ्तारी की सूचना तुरंत किसी परिचित व्यक्ति या परिवार को दी जाए। - गिरफ्तार व्यक्ति को वक...

Living Conditions of Prisoners in Jail शिला बारसे vs State of Maharashtra : AIBE 20 विशेषांक

 शिला बारसे बनाम महाराष्ट्र राज्य (Sheela Barse vs State of Maharashtra, 1983) एक landmark न्यायालयीन मामला है जिसमें महिलाओं के प्रति पुलिस कस्टोडियल अत्याचार और जेल में महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन प्रमुखता से सामने आया। इस मामले में पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता शिला बारसे ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा था, जिसमें मुंबई सेंट्रल जेल की महिलाओं के साथ पुलिस द्वारा की गई मारपीट और बलात्कार की शिकायतें थीं।  सुप्रीम कोर्ट ने इस पत्र को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका माना और महाराष्ट्र सरकार व जेल प्रशासन को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि महिलाओं के लिए अलग-अलग लॉकअप बने हों तथा उनकी पूछताछ केवल महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा ही की जाए। राज्य को यह भी आदेश दिया गया कि गरीब कैदियों को नि:शुल्क कानूनी मदद दी जाए। कोर्ट ने जेलों में महिलाओं के मानवाधिकारों की रक्षा को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) के अंतर्गत माना। इस निर्णय ने जेलों में बंद महिला कैदियों के अधिकारों को मजबूत किया, पुलिस कस्टडी में महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार को ...

जजेस ट्रांसफर केस/ एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ

एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ (S.P. Gupta vs Union of India) 1981 का एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का फैसला है जिसे " पहला जजेस केस" या "जजेस ट्रांसफर केस" भी कहा जाता है। इस मामले में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को लेकर विवाद हुआ। मुख्य मुद्दा यह था कि उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति में केंद्र सरकार की भूमिका कितनी होनी चाहिए और क्या इस प्रक्रिया में न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि राष्ट्रपति, जो कि मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करता है, न्यायाधीशों की नियुक्ति का अंतिम अधिकारी होता है। कोर्ट ने कहा कि "परामर्श" का मतलब "सहमति" नहीं है, यानी राष्ट्रपति को न्यायपालिका से परामर्श करना होता है, लेकिन उनकी राय को बाध्यकारी नहीं माना जाएगा। इस निर्णय में कार्यपालिका को ज्यादा प्राथमिकता दी गई और न्यायपालिका की भूमिका सीमित की गई। यद्यपि इस फैसले के बाद न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर आलोचना हुई और बाद में "तीन जजों के मामले" में (1993) ...

Transgender नालसा VS State of Rajasthan : AIBE 20 विशेषांक

 NALSA बनाम राज्य राजस्थान (National Legal Services Authority vs State of Rajasthan) का संबंध मुख्य रूप से ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के संरक्षण और कानूनी मान्यता से है। NALSA (National Legal Services Authority) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी ताकि ट्रांसजेंडर समुदाय को 'तीसरा लिंग' कानूनी रूप से मान्यता मिले और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो।  सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देते हुए यह स्पष्ट किया कि वे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव से सुरक्षा), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत समान अधिकार के हकदार हैं। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आवश्यक सामाजिक, आर्थिक, और कानूनी सहायता उपलब्ध कराएं, जिसमें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, और भेदभाव रहित जीवन शामिल है।  राजस्थान सरकार समेत अन्य राज्यों को भी इस फैसले का पालन करते हुए ट्रांसजेंडर लोगों के लिए समुचित कल्याणकारी योजनाएं बनानी और कानून व्य...

Emergency medical Aid परमानन्द कटारा vs UOI : AIBE 20 विशेषांक

 परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1989) एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, जिसमें यह तय किया गया कि सड़क दुर्घटना में घायल किसी भी व्यक्ति को तत्काल चिकित्सा सहायता देना हर अस्पताल और डॉक्टर का कर्तव्य है, चाहे वह सरकारी हो या निजी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत राज्य की जिम्मेदारी को रेखांकित किया कि वह जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि चिकित्सा सहायता देने में किसी भी प्रकार की कानूनी औपचारिकताओं को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए।  मामले की पृष्ठभूमि में एक अखबार की रिपोर्ट के आधार पर मानवाधिकार कार्यकर्ता पंडित परमानंद कटारा ने जनहित याचिका दायर की थी जिसमें बताया गया कि एक स्कूटर सवार को रास्ते में घायल होने पर अस्पताल में तुरंत इलाज नहीं मिला क्योंकि अस्पताल मेडिको-लीगल केसों के लिए अधिकृत नहीं था और उसे दूसरे अस्पताल भेज दिया गया जो 20 किमी दूर था। इस विलंब के कारण घायल की मृत्यु हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे किसी भी घायल को तुरंत चिकित्सा सहायता दी जानी चाहिए ताकि जीवन बचाया जा सके औ...

Population Control जावेद vs स्टेट ऑफ हरियाणा : AIBE 20 विशेषांक

  जावेद बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा (Javed vs State of Haryana) एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, जिसमें हरियाणा पंचायती राज अधिनियम, 1994 के उन प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी जो दो से अधिक जीवित बच्चों वाले व्यक्ति को पंचायत चुनाव लड़ने और पंचायत में पद धारण करने से अयोग्य ठहराते हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि अधिनियम की धारा 175(1)(क्यू) और 177(1) वैध हैं। धारा 175(1)(क्यू) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के दो से अधिक जीवित बच्चे हैं, तो वह सरपंच, पंच, पंचायत समिति या जिला परिषद का सदस्य नहीं बन सकता। धारा 177(1) में इस अयोग्यता के प्रभाव की शुरुआत अधिनियम लागू होने के एक साल बाद से मानी गई है। न्यायालय ने इस कानून को संवैधानिक रूप से सही माना और इसे पारिवारिक नियोजन व जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से आवश्यक और सार्वजनिक हित में बताया। इस प्रकार यह कानून दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्तियों के पंचायत चुनावों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाता है ताकि परिवार नियोजन को बढ़ावा दिया जा सके। इस फैसले से यह स्थापित हुआ कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकार का यह...

Seed of PIL मुंबई कामगार सभा vs अब्दुल : AIBE 20 विशेषांक

मुंबई कामगार सभा vs अब्दुलभाई फैजुल्लाभाई (1976) एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का फैसला है जो बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 से संबंधित है। इस केस में मुंबई के छोटे व्यवसायों द्वारा स्वैच्छिक रूप से कामगारों को दिया जाने वाला अतिरिक्त बोनस अचानक बंद कर दिया गया था। जब कामगारों ने इस पर कानूनी कार्रवाई की, तो पहले औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत मध्यस्थ बोर्ड ने उनकी मांग ठुकरा दी, फिर औद्योगिक अधिकरण तथा उच्च न्यायालय ने भी उनके दावे को खारिज कर दिया।  सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई एक 2-न्यायाधीशों की पीठ ने की, जिसमें न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर और न्यायमूर्ति एन.एल उंटवालिया थे। इस फैसले ने जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा को कानूनी तौर पर मान्यता दी और आम आदमी को न्यायालय तक पहुंचाने के लिए PIL के महत्व को स्थापित किया। इस केस को भारत में PIL के शुरुआती मामलों में से एक माना जाता है।  संक्षेप में, इस निर्णय ने लाभ-आधारित बोनस की व्याख्या की और कामगारों के हितों की रक्षा के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं में जनहित याचिका की भूमिका को महत्व दिया है

Speedy Trail हुसैनारा खातून : AIBE 20 विशेषांक

  हुसैनारा खातून एक सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक केस है, मामले में विचाराधीन कैदियों के अधिकारों का सवाल उठाया गया था, जो बिना मुकदमे के जेल में लंबे समय से बंद थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत हर कैदी को शीघ्र और निःशुल्क कानूनी सहायता मिलना चाहिए। इस फैसले का परिणाम यह हुआ कि बिहार की जेलों में लगभग 40,000 विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया क्योंकि उन्हें उचित सुनवाई का अधिकार नहीं दिया गया था। यह केस भारतीय न्यायपालिका में जनहित याचिका (PIL) की शुरुआत माना जाता है और मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती ने इस मामले में मौलिक अधिकारों और न्याय तक पहुंच को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई थी। इस फैसले ने ये स्थापित किया कि गरीबी या अशिक्षा के कारण किसी को न्याय से वंचित नहीं रखा जा सकता। संक्षेप में, हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979) केस भारत में न्याय प्रणाली में विचाराधीन कैदियों के अधिकारों और शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता को उजागर करने वाला एक लैंडमार्क निर्णय है

वक्फ (Waqf)/ न्यास (Trust) : AIBE 20 विशेषांक

वक्फ (Waqf) मुस्लिम कानून में एक धार्मिक और सामाजिक संस्था है, जिसमें किसी चल या अचल संपत्ति को इस्लाम धर्म के नाम पर स्थायी रूप से समर्पित कर दिया जाता है ताकि उसकी आय या लाभ धार्मिक, पुण्य या धर्मार्थ कार्यों में उपयोग किया जा सके। वक्फ का अर्थ संपत्ति का ऐसा अवरोध है जो अल्लाह के नाम कर दिया गया हो और जिसका उपयोग न तो बेचा जा सके, न दिया जा सके या विरासत में दिया जा सके, बल्कि उसकी आय हमेशा सामाजिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए खर्च हो। वक्फ की प्रमुख विशेषताएं हैं: - यह एक स्थायी समर्पण होता है, जिसे रद्द नहीं किया जा सकता। - वक्फ की संपत्ति पर मालिकाना हक समाप्त हो जाता है और वह संपत्ति धार्मिक या सामाजिक कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो जाती है। - वक्फ में दी गई संपत्ति का लाभ गरीबों, जरूरतमंदों, मस्जिदों, मदरसों, अस्पतालों, स्कूलों आदि धार्मिक या धर्मार्थ संस्थानों को दिया जाता है। - वक्फ के अंतर्गत संपत्ति को न तो बेच सकते हैं, न तो इसे उपहार के रूप में दे सकते हैं और न ही इसे विरासत में बाँट सकते हैं। भारत में वक्फ कानून वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत नियंत्रित होता है और प्रत्येक राज्य म...

हिबा (Hiba)/दान: AIBE 20 विशेषांक

 हिबा (Hiba) मुस्लिम कानून में संपत्ति या वस्तु का बिना किसी प्रतिफल के दिया जाने वाला उपहार है। यह एक स्वैच्छिक और कानूनी रूप से बाध्यकारी कार्य है, जिसका अर्थ है कि दाता (जिसने उपहार दिया) अपनी वस्तु का स्वामित्व बिना किसी शर्त के हिबा के माध्यम से ग्रहणकर्ता को हस्तांतरित कर देता है। हिबा की प्रक्रिया में दाता द्वारा स्पष्ट घोषणा, ग्रहणकर्ता की स्वीकृति और वस्तु का कब्जा देना शामिल होता है। मुस्लिम कानून में हिबा के कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं: - हिबा के समय संपत्ति का अस्तित्व आवश्यक है, भविष्य की संपत्ति को हिबा नहीं किया जा सकता। - हिबा का मकसद वैध होना चाहिए; कोई हराम (निषिद्ध) वस्तु हिबा के रूप में नहीं दी जा सकती। - हिबा दो प्रकार के होते हैं: हिबा-बिल-नवाज़ (विनिमय के साथ हिबा) और हिबा-बा-शर्त-उल-इवाज़ (प्रतिफल के साथ हिबा)।  - हिबा-बिल-नवाज़ में दोनों पक्ष कुछ न कुछ विनिमय करते हैं, जैसे वस्तु के बदले वस्तु। - हिबा-बा-शर्त-उल-इवाज़ में शर्त होती है, और यदि वह शर्त पूरी नहीं होती तो हिबा रद्द भी हो सकता है। हिबा में किसी भी प्रकार की शर्तों के बावजूद कब्जा देना आवश्यक ...

इद्दत iddat (चार महीने और दस दिन) AIBE 20 विशेषांक

 इद्दत (Iddat) इस्लामी कानून में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो तलाक या पति की मृत्यु के बाद उस अवधि को दर्शाती है जिसे एक महिला को बिताना आवश्यक होता है, जिसमें वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती। इद्दत का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिला गर्भवती है या नहीं, ताकि बच्चे की पिता की पहचान स्पष्ट रहे। इसके साथ ही यह मृत पति की विधवा के लिए मातृ शोक अवधि का भी पर्याय है, और तलाक के मामले में मेल-जोल के लिए एक सोच-विचार का समय प्रदान करता है। इद्दत का अवधि विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करती है: - तलाक के बाद , यदि विवाह पूरा हुआ हो (संभोग हुआ हो), तो महिला को तीन मासिक धर्म चक्र (तीन महीने) तक इद्दत का पालन करना होता है। - यदि महिला गर्भवती हो , तो इद्दत तब तक चलती है जब तक बच्चे का जन्म न हो या गर्भपात न हो जाए। - अगर महिला मासिक धर्म से मुक्त हो ( मेनोपॉज हो गई हो ), तो उसे तीन चांद के महीने इद्दत पूरी करनी होती है। - पति के मृत्यु पर इद्दत की अवधि चार महीने और दस दिन होती है, या अगर महिला गर्भवती हो तो बच्चे के जन्म तक। इद्दत के दौरान महिला को संयम का पालन करना जरूरी होता है, ज...

मुस्लिम समुदाय में तलाक के प्रकार : AIBE 20 विशेषांक

1. तलाक-उल-सुन्नत (Talaq-ul-Sunnat):    - यह पैगंबर की पारंपरिक परंपराओं पर आधारित तलाक है।    - इसके दो उपप्रकार हैं:      - तलाक-ए-अहसन (Talaq-e-Ahsan): एक बार तलाक दिया जाता है जब पत्नी मासिक धर्म में नहीं होती, फिर इद्दत अवधि (तीन मासिक धर्म चक्र) तक संबंध नहीं बनाया जाता।      - तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan): तीन बार तलाक मासिक धर्म के तीन अलग-अलग चक्रों में दिया जाता है, बिना संभोग के। 2. तलाक-ए-बिद्दत (Talaq-e-Biddat) या तीन तलाक:    - इसमें तीन बार तलाक एक साथ कहा जाता है, जिससे तत्काल तलाक हो जाता है।    - भारत में यह विधिवत अवैध घोषित है। 3. तलाक-ए-तफवीज (Talaq-e-Tafweez):    - यह पत्नी को पति द्वारा दिया गया तलाक का अधिकार है, जब पति द्वारा यह शक्ति सौंप दी जाती है। 4. खुला (Khula):    - पत्नी द्वारा पति से तलाक की मांग करना, जिसमें पत्नी कुछ मुआवजा देकर तलाक ले सकती है। 5. मुबारत (Mubarat):    - आपसी सहमति से पति और पत्नी दोनों मिलकर तलाक लेते हैं। 6. फस्ख (Faskh): ...

मर्ज उल मौत : AIBE 20 विशेषांक

मर्ज उल मौत (Marz-ul-Maut) का अर्थ है "मौत की बीमारी" या "डैथ बेड इलनेस"। यह उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी व्यक्ति को ऐसी जानलेवा बीमारी हो जिसके कारण उसकी मृत्यु करीब हो और ठीक होने की संभावना बहुत कम हो। इसका निर्णय सामान्यतः एक चिकित्सक द्वारा किया जाता है। मर्ज उल मौत के दौरान व्यक्ति अपनी संपत्ति या धरोहर का एक विशेष हिस्सा (अधिकतर एक तिहाई से अधिक) गिफ्ट या ट्रांसफर कर सकता है, जिसे "डैथ बेड ट्रांजैक्शन" भी कहा जाता है। मर्ज उल मौत की प्रमुख विशेषताएं: - रोग ऐसा होना चाहिए जो मृत्यु का कारण बन सके। - रोगी के मन में मृत्यु की आशंका उत्पन्न हो। - रोग की स्थिति ऐसी हो कि व्यक्ति सामान्य क्रियाकलापों में असमर्थ हो जाए। मुस्लिम कानून में मर्ज उल मौत पर की गई गिफ्ट या संपत्ति अंतरण विशेष महत्व रखते हैं और यह डैथ बेड ट्रांजैक्शन के तहत मान्य होते हैं, बशर्ते कि इस दौरान उपहार देने वाला स्वस्थ विचार वाले और समझदार हो और गिफ्ट को प्राप्त करने वाला जीवित हो। संक्षेप में, मर्ज उल मौत वह अवस्था है जब कोई व्यक्ति जानलेवा बीमारी की स्थिति में हो और उसे अपनी अंति...

ख्यार उल बुलुग : AIBE 20 विशेषांक

  ख्यार उल बुलुग (Khyar-ul-Bulugh) का अर्थ है "यौवन का विकल्प"। यह इस्लामी कानून के तहत विवाह संबंधी एक अधिकार है जो किसी नाबालिग को दिया जाता है, जो यौवन (बालिग) हो जाने के बाद अपनी शादी को स्वीकार या अस्वीकार करने का विकल्प रखता है। इसका मतलब यह है कि यदि किसी व्यक्ति की शादी उसके यौवन के पहले कर दी गई हो, तो वह यौवन प्राप्त करने के बाद चाहे तो उस विवाह को रद्द कर सकता है या उसे बनाए रख सकता है। इस अधिकार का उद्देश्य नाबालिगों के हितों की सुरक्षा करना है, ताकि वे बालिग होने पर अपनी मर्जी से शादी का निर्णय ले सकें।  मुस्लिम कानून में यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रावधान माना जाता है जो अवांछित या जबरन की गई शादियों से बचाता है। उदाहरणस्वरूप, यदि एक लड़की की शादी 15 वर्ष की आयु से पहले कर दी गई हो, तो वह 18 वर्ष की आयु तक इस विवाह को रद्द करने का अधिकार रखती है। यह अधिकार पुरुषों और स्त्रियों दोनों को प्राप्त होता है। यह प्रथा इस्लामी शरिया कानून की एक पारंपरिक व्यवस्था है, जिसे आधुनिक मुस्लिम विवाह कानूनों में भी शामिल किया गया है। संक्षेप में, ख्यार उल बुलुग नाबालिगों को बालि...

अभिव्यक्ति चाईल्ड केयर एंड ह्यूमन राइट फोरम

  गुड्डा भईया द्वारा एक फोरम की शुरुआत न्यायधानी बिलासपुर से की जा रही है जो निम्नलिखित बातों पर विचार विमर्श करते हुए यथाशक्ति, यथासंभव सक्रिय कार्य करने का प्रयास करेगी  बालकों से संबंधित सभी संवैधानिक प्रावधान एवं कानून की जमीनी हकीकत, लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण के लिए सक्षम प्राधिकारी एवं नोडल अधिकारियों की सटीक जानकारी, मानसिक स्वास्थ्य एवं देखरेख के लिए सरकारी तंत्र तथा इसमें खामियों पर चर्चा, दिव्यांगजन के विशिष्ट अधिकार तथा फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के सहारे प्रचलित भ्रष्टाचार, निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के परिपालन में हो रही गड़बड़ियों पर चर्चा एवं इसके समाधान स्वरूप विधिक सेवाएं, बाल विवाह प्रतिषेध कानूनों के व्यवहारिक चुनौतियों पर चर्चा, मानव अधिकार आयोग से मिलता जुलता नाम के संगठन स्थापित कर दिग्भ्रमित कर स्वयं को समाजसेवी बतलाने वाले संदिग्धों की शिकायत कब कहां और कैसे करें इस पर चर्चा और समाधान,सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का व्यवहारिक पक्ष, इसको ढाल बनाकर प्रताड़ित करने वाले संगठित प्रयास हो या सक्षम प्राधिकारियों द्वारा...

◾️ Constitutional Frameworks for Forest

▪️ Article 48-A: Directs the State to protect and improve the environment and safeguard forests and wildlife.  ▪️ Articles 244 and 244A: Provide special provisions for the administration of Scheduled Areas and Tribal Areas.  ▪️ Fifth and Sixth Schedules: Provide autonomy and protection to tribal areas, allowing for self-governance and customary law application.  ▪️ Recognition of Scheduled Tribes: The Constitution formally recognizes Scheduled Tribe groups and provides a framework to protect their rights and interests.  ▪️ Provisions of the Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act (PESA), 1996: Extends provisions of panchayat governance to Scheduled Areas, empowering gram sabhas to safeguard community resources. ◾️ वनों के लिए संवैधानिक ढाँचा ▪️ अनुच्छेद 48-ए: राज्य को पर्यावरण की रक्षा और सुधार तथा वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा का निर्देश देता है। ▪️ अनुच्छेद 244 और 244ए: अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करते हैं। ...

भारतीय संविधान के शीर्ष 20 महत्वपूर्ण संशोधन

1. पहला संशोधन, 1951 ✅ - भूमि सुधारों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए अनुच्छेद 31A, 31B और नौवीं अनुसूची जोड़ी गई। - महत्व: कृषि सुधारों और राज्य के अधिकार को मज़बूत किया गया। 2. सातवाँ संशोधन, 1956 - भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया; भाग A, B, C के राज्यों को समाप्त किया गया; केंद्र शासित प्रदेशों की शुरुआत की गई। - महत्व: राज्यों के भाषाई पुनर्गठन को संभव बनाया गया। 3. नौवाँ संशोधन, 1960 - 1958 के समझौते (बेरुबारी संघ मामला) के बाद भारत-पाकिस्तान सीमाओं को समायोजित किया गया। - महत्व: क्षेत्रीय समायोजन को स्पष्ट किया गया। 4. दसवाँ संशोधन, 1961 - दादरा और नगर हवेली को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया।  - महत्व: भारत के प्रशासनिक ढाँचे का विस्तार किया गया। 5. 12वाँ संशोधन, 1962 - स्वतंत्रता के बाद गोवा, दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में शामिल किया गया। - महत्व: पूर्व पुर्तगाली क्षेत्रों को एकीकृत किया गया। 6. 14वाँ संशोधन, 1962 - पांडिचेरी को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया; संसद को केंद्र शासित प्रदेशों के लिए राज्य विधानमंडल बना...

Offences Related to Children / बच्चों से संबंधित अपराध

 1. Q: Who is a child under BNS 2023? A: A person below 18 years of age. प्र: भा.न्या.सं. 2023 में “बालक” किसे कहा गया है? उ: 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को। 2. Q: What is kidnapping from lawful guardianship? A: Taking away a minor from lawful guardian — Section 135. प्र: वैध अभिभावक से अपहरण क्या है? उ: अभिभावक की अनुमति बिना नाबालिग को ले जाना — धारा 135। 3. Q: What is the difference between kidnapping and abduction? A: Kidnapping involves minors; abduction = forcible taking of any person. प्र: अपहरण और अबडक्शन में क्या अंतर है? उ: अपहरण = नाबालिग का; अबडक्शन = किसी भी व्यक्ति का बलपूर्वक ले जाना। 4. Q: Which section punishes kidnapping for begging? A: Section 137. प्र: भिक्षा के लिए अपहरण की सजा किस धारा में है? उ: धारा 137। 5. Q: Exposure or abandonment of a child below 12 years is dealt under? A: Section 138. प्र: 12 वर्ष से कम बच्चे को त्यागने या उजागर करने की सजा किस धारा में है? उ: धारा 138। 6. Q: Buying or selling a minor for immoral purposes is under which section? A: Se...

Offences Related to Women / महिलाओं से संबंधित अपराध

 1. Q: What is the main provision for rape under BNS 2023? A: Section 63 — Punishment for rape. प्र: भा.न्या.सं. 2023 में बलात्कार से संबंधित मुख्य धारा कौन-सी है? उ: धारा 63 — बलात्कार का दंड। 2. Q: What is the punishment for gang rape? A: Section 65 — Rigorous imprisonment for 20 years or life. प्र: सामूहिक बलात्कार का दंड क्या है? उ: धारा 65 — 20 वर्ष का कठोर कारावास या आजीवन कारावास। 3. Q: Rape of a woman below 18 years is punishable with what? A: Death or life imprisonment. प्र: 18 वर्ष से कम आयु की महिला से बलात्कार का दंड क्या है? उ: मृत्युदंड या आजीवन कारावास। 4. Q: Which section punishes sexual harassment? A: Section 74. प्र: यौन उत्पीड़न के लिए कौन-सी धारा दंडित करती है? उ: धारा 74। 5. Q: What is voyeurism? A: Watching or capturing a woman’s image without consent — Section 75. प्र: ‘वॉयूरिज़्म’ क्या है? उ: बिना सहमति महिला की तस्वीर या दृश्य देखना/रिकॉर्ड करना — धारा 75। 6. Q: What is stalking under BNS 2023? A: Repeatedly following or contacting a woman — Section 76. प्र...

संविधान सभा से संबंधित प्रश्नोत्तर : AIBE 20 विशेषांक

प्रश्न:  संविधान सभा का गठन कब हुआ था? उत्तर: 6 दिसंबर 1946 प्रश्न:  संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष कौन थे?  उत्तर: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद प्रश्न:  संविधान सभा में मसौदा समिति के अध्यक्ष कौन थे?  उत्तर: डॉ. भीमराव अंबेडकर प्रश्न:  संविधान सभा में कुल कितने सदस्य थे?  उत्तर: 389 प्रश्न:  संविधान सभा ने संविधान कब अंगीकार किया?  उत्तर: 26 नवंबर 1949 प्रश्न:  संविधान सभा का अंतिम सत्र कब हुआ?  उत्तर: 24 जनवरी 1950 प्रश्न:  भारतीय संविधान को लागू कब किया गया?  उत्तर: 26 जनवरी 1950 प्रश्न:  संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई?  उत्तर: 9 दिसंबर 1946 प्रश्न:  संविधान सभा में महिलाओं की संख्या कितनी थी?  उत्तर: 15 प्रश्न:  संविधान सभा के प्रारूप समिति में कितने सदस्य थे?  उत्तर: 7 प्रश्न:  संविधान सभा का आखिरी हस्ताक्षर किसने किया था?  उत्तर: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद प्रश्न:  संविधान सभा की बैठकों की कार्यवाही किस भाषा में थी?  उत्तर: हिन्दी और अंग्रेजी प्रश्न:  सं...

विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों और प्रमुख निष्कर्षों का संक्षिप्त सारांश : AIBE 20 विशेषांक

कपूर आयोग (1966) - महात्मा गांधी की हत्या की साज़िश की जांच के लिए न्यायमूर्ति जीवन्लाल कपूर के अध्यक्षत्व में गठित। - 162 बैठकों में 101 गवाहों से साक्ष्य लिए गए। - आयोग ने देखा कि जांच में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर जनरल की कई कमियां थीं। - इसने गोड़से की ही संगति में हत्या की साज़िश की पुष्टि की, जिसे अदालत में पहले ठुकरा दिया गया था। खोसला आयोग (1970) - सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की आधिकारिक कहानी की पुनः जांच। - पुष्टि की कि बोस की मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई और बाद में उन्हें ताइहो (ताइपे) में दाह संस्कार किया गया। - कई अफवाहें और शंकाओं के बावजूद हत्या का ठोस प्रमाण नहीं मिला। मंडल आयोग (1979) - सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों ( OBC ) की पहचान के लिए। - 3,743 जातियों को OBC घोषित किया जो करीब 52% जनसंख्या बनाती हैं। - OBC के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश। - 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा को लेकर आरक्षण से समृद्ध वर्ग को बाहर रखा गया। - छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण एवं आर्थिक सहायता के उपाय सुझाए। मुखर्जी आयोग (1999-2005) - सुभाष चंद्र बोस के गायब होने की परिस्थितियों की जांच। -...

RTI : धारा 8 और धारा 11 को एक साथ पढ़ा जाए

न्यायालय ने केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ,  भारत के उच्चतम न्यायालय बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल ( 2020)   में संविधान पीठ के निर्णय पर विश्वास किया ,  जिसमें कहा गया था कि जब सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा  8(1)( ञ) के अधीन व्यक्तिगत जानकारी मांगी जाती है ,  तो धारा  11  के अधीन प्रक्रिया का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये ।   न्यायालय ने कहा कि पर-व्यक्ति को सूचना को प्रथम दृष्टया   गोपनीय माना जाना चाहिये ,  तथा प्रभावित पक्षकारों को धारा  11  के अधीन प्रकटीकरण का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिये। धारा  8  और धारा  11  को एक साथ पढ़ा जाना चाहिये ,  तथा प्रकटीकरण की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिये जब लोकहित संभावित नुकसान से अधिक हो। सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन   महत्त्वपूर्ण उपबंध :   सूचना का अधिकार (धारा  3):   इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन सभी नागरिकों ...

भारतीय साक्ष्य अधिनियम AIBE विशेषांक

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की निम्न धाराओं का प्वाइंट टू पॉइंट संक्षिप्त में   धारा 4 – उपधारणाएँ “May Presume”, “Shall Presume”, and “Conclusive Proof” यह धारा बताती है कि अदालत किन परिस्थितियों में किसी तथ्य की "उपधारणा करेगी", "उपधारणा कर सकेगी" या "निश्चायक सबूत" मानेगी। इसका उद्देश्य प्रमाण की धारणा को स्पष्ट करना है . धारा 7 – प्रसंग, हेतुक और परिणाम Facts which are the occasion, cause, or effect of facts in issue वे तथ्य सुसंगत हैं जो किसी विवादित तथ्य के प्रसंग, कारण या परिणाम हैं। उदाहरण के लिए, हत्या या चोरी के पहले और बाद की परिस्थितियाँ भी साक्ष्य में ली जा सकती हैं. धारा 15 – आकस्मिक या साशय कृत्य Facts bearing on question whether act was accidental or intentional  जब यह प्रश्न हो कि कोई कार्य आकस्मिक था या जानबूझकर किया गया था, तो समान प्रकृति की पूर्व घटनाएँ प्रासंगिक होती हैं। जैसे—कई बार बीमित घर जलाना यह साबित कर सकता है कि कार्य जानबूझकर था. धारा 26 – पुलिस अभिरक्षा में स्वीकारोक्ति Confession by accused while in custody of police not to be ...

महिला एवं बाल विकास विभाग छत्तीसगढ़ शासन

 

MSW Women & Child Development

 1.  बालकों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान एवं कानून :- 1.1 भारत का संविधान 1.2 किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 यथा संशोधित 2021 1.3 किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षण) नियम, 2016 यथा संशोधित 2022 1.4 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 एवं नियम 2020 1.5 मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम, 2017 1.6 दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 1.7 छत्तीसगढ़ दिव्यांगजन अधिकार नियम 2023 1.8 निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 1.9 बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 1.10 बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 1.11 मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1.12 सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 1.13 विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1.14 स्वपाक औषधियां और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम 1.15 छत्तीसगढ़ बाल अधिकार संरक्षण आयोग नियम, 2009 1.16 दत्तक ग्रहण विनियम 2022 2. बाल कल्याण एवं विकास :- 2.1 मिशन सक्षम आंगनबाड़ी एवं पोषण 2.0 2.2 कुपोषण, एनीमिया, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर 2.3 कुपोषण का प्रबंधन - कुपोषण की पहचान, कुपोषित बच्चों की देखभाल 2.4 शरीर के विकास के लिए...

Electronic Data Processing in System Analysis and Design

 Electronic data processing is the use of electronic computers and data processing machines to aid in organizing, storing, and transferring documents from paper format to digital format. Data are supposed to be raw facts. They are processed to turn them into infor-mation. Processing of data may involve several phases and there are different ways to data processing. In an EDP organization, numerous types of professionals are hired. This chapter focuses on each aspect of an EDP organization in an elaborate way. The word data is the plural of Latin datum, neuter past participle of dare, to give, hence something given. In English, the word datum is still used in the general sense of something given. Data processing refers to the process of performing specific operations on a set of data or a database. A database is an organized collection of facts and information, such as records on employees, inventory, customers, and potential customers. Data processing primarily is performed on info...