हुसैनारा खातून एक सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक केस है, मामले में विचाराधीन कैदियों के अधिकारों का सवाल उठाया गया था, जो बिना मुकदमे के जेल में लंबे समय से बंद थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत हर कैदी को शीघ्र और निःशुल्क कानूनी सहायता मिलना चाहिए। इस फैसले का परिणाम यह हुआ कि बिहार की जेलों में लगभग 40,000 विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया क्योंकि उन्हें उचित सुनवाई का अधिकार नहीं दिया गया था।
यह केस भारतीय न्यायपालिका में जनहित याचिका (PIL) की शुरुआत माना जाता है और मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती ने इस मामले में मौलिक अधिकारों और न्याय तक पहुंच को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई थी। इस फैसले ने ये स्थापित किया कि गरीबी या अशिक्षा के कारण किसी को न्याय से वंचित नहीं रखा जा सकता।
संक्षेप में, हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979) केस भारत में न्याय प्रणाली में विचाराधीन कैदियों के अधिकारों और शीघ्र सुनवाई की आवश्यकता को उजागर करने वाला एक लैंडमार्क निर्णय है
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