एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ (S.P. Gupta vs Union of India) 1981 का एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का फैसला है जिसे "पहला जजेस केस" या "जजेस ट्रांसफर केस" भी कहा जाता है। इस मामले में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया को लेकर विवाद हुआ। मुख्य मुद्दा यह था कि उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति में केंद्र सरकार की भूमिका कितनी होनी चाहिए और क्या इस प्रक्रिया में न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है।
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि राष्ट्रपति, जो कि मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करता है, न्यायाधीशों की नियुक्ति का अंतिम अधिकारी होता है। कोर्ट ने कहा कि "परामर्श" का मतलब "सहमति" नहीं है, यानी राष्ट्रपति को न्यायपालिका से परामर्श करना होता है, लेकिन उनकी राय को बाध्यकारी नहीं माना जाएगा। इस निर्णय में कार्यपालिका को ज्यादा प्राथमिकता दी गई और न्यायपालिका की भूमिका सीमित की गई। यद्यपि इस फैसले के बाद न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर आलोचना हुई और बाद में "तीन जजों के मामले" में (1993) और "चार जजों के मामले" में (2015) सुधार हुआ जिसके चलते कालेजियम प्रणाली लागू की गई।
एसपी गुप्ता केस ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के अधिकारों की सीमा तय की, परन्तु इस फैसले ने कार्यपालिका को न्यायिक नियुक्ति में अधिक प्रभावशाली बनाए रखा, जिससे बाद के मामलों में न्यायपालिका ने अपना अधिकार स्थापित किया।
संक्षेप में, यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता, कार्यपालिका के अधिकार और न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिक व्याख्या का मील का पत्थर था जस्टिस पी एन भगवती l
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