इद्दत (Iddat) इस्लामी कानून में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो तलाक या पति की मृत्यु के बाद उस अवधि को दर्शाती है जिसे एक महिला को बिताना आवश्यक होता है, जिसमें वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती। इद्दत का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिला गर्भवती है या नहीं, ताकि बच्चे की पिता की पहचान स्पष्ट रहे। इसके साथ ही यह मृत पति की विधवा के लिए मातृ शोक अवधि का भी पर्याय है, और तलाक के मामले में मेल-जोल के लिए एक सोच-विचार का समय प्रदान करता है।
इद्दत का अवधि विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करती है:
- तलाक के बाद, यदि विवाह पूरा हुआ हो (संभोग हुआ हो), तो महिला को तीन मासिक धर्म चक्र (तीन महीने) तक इद्दत का पालन करना होता है।
- यदि महिला गर्भवती हो, तो इद्दत तब तक चलती है जब तक बच्चे का जन्म न हो या गर्भपात न हो जाए।
- अगर महिला मासिक धर्म से मुक्त हो (मेनोपॉज हो गई हो), तो उसे तीन चांद के महीने इद्दत पूरी करनी होती है।
- पति के मृत्यु पर इद्दत की अवधि चार महीने और दस दिन होती है, या अगर महिला गर्भवती हो तो बच्चे के जन्म तक।
इद्दत के दौरान महिला को संयम का पालन करना जरूरी होता है, जैसे कि पुनर्विवाह न करना, सामाजिक जीवन में संयम रखना आदि। इस अवधि के नियम शिया और सुन्नी समुदायों में कुछ अंतर हो सकते हैं।
संक्षेप में, इद्दत वह कानूनी और धार्मिक अवधि है जो तलाक या पति की मौत के बाद महिला को गुजारनी होती है, जिससे बच्चे की पिता की पुष्टि हो सके, सामाजिक और धार्मिक मर्यादाओं का पालन हो, और तलाक के मामले में सोच-विचार का अवसर मिल सके।
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