शिला बारसे बनाम महाराष्ट्र राज्य (Sheela Barse vs State of Maharashtra, 1983) एक landmark न्यायालयीन मामला है जिसमें महिलाओं के प्रति पुलिस कस्टोडियल अत्याचार और जेल में महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन प्रमुखता से सामने आया। इस मामले में पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता शिला बारसे ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा था, जिसमें मुंबई सेंट्रल जेल की महिलाओं के साथ पुलिस द्वारा की गई मारपीट और बलात्कार की शिकायतें थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पत्र को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका माना और महाराष्ट्र सरकार व जेल प्रशासन को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि महिलाओं के लिए अलग-अलग लॉकअप बने हों तथा उनकी पूछताछ केवल महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा ही की जाए। राज्य को यह भी आदेश दिया गया कि गरीब कैदियों को नि:शुल्क कानूनी मदद दी जाए। कोर्ट ने जेलों में महिलाओं के मानवाधिकारों की रक्षा को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) के अंतर्गत माना।
इस निर्णय ने जेलों में बंद महिला कैदियों के अधिकारों को मजबूत किया, पुलिस कस्टडी में महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार को रोका और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए राज्य की जिम्मेदारी तय की। यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था में महिला कैदियों के मानवाधिकारों और कानूनी सहायता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है
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