कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Common Cause vs Union of India) एक सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण मामला है जो मुख्य रूप से "जीवन के अधिकार" (Article 21) के अंतर्गत "गौरव के साथ मरने का अधिकार" या "डिग्निटी के साथ मृत्यु का अधिकार" (right to die with dignity) से संबंधित है।
इस मामले में, पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) 2005 में दायर की गई थी, जिसमें कॉमन कॉज नामक संस्था ने दलील दी कि जीवन के अधिकार के साथ-साथ मृत्यु के अधिकार को भी संविधान में सुरक्षित किया जाना चाहिए। वे चाहते थे कि "Living Will" या एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव (Advanced Medical Directive) को वैध माना जाए, जिससे कोई टर्मिनली बीमार मरीज अपनी अंतिम इच्छाओं को लिखित रूप में व्यक्त कर सके कि वह जीवन-रक्षक उपकरणों या अनावश्यक चिकित्सा सहायता से मुक्त रहना चाहता है।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला दिया कि "जीवन के अधिकार" के तहत "डिग्निटी के साथ मृत्यु का अधिकार" भी शामिल है। कोर्ट ने इस अधिकार को मान्यता देते हुए गाइडलाइंस जारी कीं, जिनमें पेसिव युथनेशिया (passive euthanasia) और एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव की कानूनी मान्यता दी गई। कोर्ट ने माना कि टर्मिनली बीमार व्यक्ति चिकित्सा उपचार को रोकने या जीवन-समर्थक तकनीकों को बंद करने का निर्णय ले सकता है, और इसे आत्महत्या नहीं माना जाना चाहिए।
इस फैसले ने चिकित्सा क्षेत्र में मरीज की स्वायत्तता, गरिमा और मानवीय अधिकारों के संरक्षण को मजबूत किया। बाद में, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की गाइडलाइंस को व्यवहारिक दृष्टिकोण से संशोधित भी किया ताकि प्रक्रिया सरल और अधिक कार्यान्वयन योग्य हो सके। संक्षेप में, कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया ने भारत में "डिग्निटी के साथ मृत्यु का अधिकार" को संवैधानिक मान्यता दी और चिकित्सकीय निर्णयों में मरीज की इच्छाओं का सम्मान सुनिश्चित किया पैसिव ईच्छा मृत्यु को मान्यता दी गई
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