भारत में "In re Noise Pollution Case" एक सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला है, जिसमें कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जम्हाई, बढ़ी आवाज़, लाउडस्पीकर इत्यादि से उत्पन्न शोर प्रदूषण भी जीवन के अधिकार के उल्लंघन के समान है। इस मामले में कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत "प्रदूषणमुक्त और शांतिपूर्ण जीवन" का अधिकार मान्यता दी, जिसमें शोर प्रदूषण होना भी जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव डालता है।
फैसले में कोर्ट ने 10 बजे रात से 6 बजे सुबह तक के समय में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया और धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजनों में शोर के स्तर को नियंत्रित करने संबंधी सख्त नियम बनाए। कोर्ट ने सरकारी एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे शोर प्रदूषण नियंत्रण नियमों का पालन कराएं और आम जनता के स्वास्थ्य और आराम को प्राथमिकता दें।
इस निर्णय ने भारत में शोर प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए कानूनी आधार स्थापित किया और यह बताया कि सार्वजनिक शोर प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि यह एक नागरिक के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार का उल्लंघन भी है। इस केस के प्रसंग में कोर्ट ने सरकार और सार्वजनिक निकायों को जवाबदेह ठहराया और शोर प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए सावधानीपूर्वक नियम लागू करने को कहा
Comments
Post a Comment