सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991) भारत का एक महत्वपूर्ण पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सुप्रीम कोर्ट केस है। इसमें याचिकाकर्ता सुभाष कुमार ने आरोप लगाया कि बिहार राज्य के पास स्थित दो औद्योगिक कारखाने (वेस्ट बोकारो कोलियरीज और टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी) ने आसपास के जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है, जिससे लोग साफ पानी के अभाव में हैं और उनका जीवन प्रभावित हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इस अधिकार में स्वच्छ जल तथा प्रदूषण मुक्त हवा का अधिकार भी सम्मिलित है। कोर्ट ने माना कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण का अधिकार जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है और राज्य तथा औद्योगिक संस्थाओं को इस दिशा में जिम्मेदार और सतर्क होना चाहिए।
यह केस पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाता है क्योंकि इसने जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से पर्यावरणीय अधिकारों की रक्षा को संवैधानिक रूप दिया तथा प्रदूषण नियंत्रण के लिए न्यायालय की सक्रिय भूमिका स्थापित की। साथ ही राज्य और उद्योगों को पर्यावरणीय संरक्षण के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का आदेश भी दिया गया।
इस प्रकार, सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य ने जीवन के अधिकार के तहत पर्यावरण सुरक्षा को एक मौलिक अधिकार माना और भारत में पर्यावरण न्यायशास्त्र को मजबूती प्रदान की
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