मुंबई कामगार सभा vs अब्दुलभाई फैजुल्लाभाई (1976) एक महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का फैसला है जो बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 से संबंधित है। इस केस में मुंबई के छोटे व्यवसायों द्वारा स्वैच्छिक रूप से कामगारों को दिया जाने वाला अतिरिक्त बोनस अचानक बंद कर दिया गया था। जब कामगारों ने इस पर कानूनी कार्रवाई की, तो पहले औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत मध्यस्थ बोर्ड ने उनकी मांग ठुकरा दी, फिर औद्योगिक अधिकरण तथा उच्च न्यायालय ने भी उनके दावे को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई एक 2-न्यायाधीशों की पीठ ने की, जिसमें न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर और न्यायमूर्ति एन.एल उंटवालिया थे। इस फैसले ने जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा को कानूनी तौर पर मान्यता दी और आम आदमी को न्यायालय तक पहुंचाने के लिए PIL के महत्व को स्थापित किया। इस केस को भारत में PIL के शुरुआती मामलों में से एक माना जाता है।
संक्षेप में, इस निर्णय ने लाभ-आधारित बोनस की व्याख्या की और कामगारों के हितों की रक्षा के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं में जनहित याचिका की भूमिका को महत्व दिया है
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