NALSA बनाम राज्य राजस्थान (National Legal Services Authority vs State of Rajasthan) का संबंध मुख्य रूप से ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के संरक्षण और कानूनी मान्यता से है। NALSA (National Legal Services Authority) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी ताकि ट्रांसजेंडर समुदाय को 'तीसरा लिंग' कानूनी रूप से मान्यता मिले और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो।
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देते हुए यह स्पष्ट किया कि वे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव से सुरक्षा), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत समान अधिकार के हकदार हैं। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आवश्यक सामाजिक, आर्थिक, और कानूनी सहायता उपलब्ध कराएं, जिसमें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, और भेदभाव रहित जीवन शामिल है।
राजस्थान सरकार समेत अन्य राज्यों को भी इस फैसले का पालन करते हुए ट्रांसजेंडर लोगों के लिए समुचित कल्याणकारी योजनाएं बनानी और कानून व्यवस्था में उनका संरक्षण करना अनिवार्य है।
इसके अलावा, राजस्थान के एक मामले में कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया जब स्थानीय बार एसोसिएशन ने NALSA के तहत नियुक्त वकीलों को ट्रांसजेंडर संबंधित मामलों में बचाव कार्य करने से रोकने का प्रयास किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपराधात्मक अवमानना बताते हुए फटकार लगाई और उस प्रतिबंध को निरस्त करने का आदेश दिया।
सारांश में, NALSA बनाम राज्य राजस्थान केस ने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की कानूनी मान्यता को मजबूती दी और राज्य के कर्तव्यों को स्पष्ट किया कि वे सूबे में इस समुदाय के उत्थान एवं संरक्षण के लिए हर संभव कदम उठाएं
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