डी के बसु बनाम राज्य बंगाल (D.K. Basu vs State of West Bengal) एक landmark सुप्रीम कोर्ट मामला है जो पुलिस हिरासत में हुई हिंसा और कस्टोडियल उत्पीड़न (custodial violence) के खिलाफ केंद्रित है। इस मामले की शुरुआत 1986 में डी के बसु ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को एक पत्र भेजा था जिसमें पुलिस हिरासत में उत्पीड़न और मौतों की बढ़ती घटनाओं को उजागर किया गया था। इस पत्र को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका के रूप में माना और इस पर सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुलिस हिरासत के दौरान गिरफ्तारी और हिरासत के नियमों की अनिवार्य रूप से पालन करने हेतु 11 दिशानिर्देश (guidelines) जारी किए, जिनका उद्देश्य हिरासत में रखे गए व्यक्ति के मानवाधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की रक्षा करना था। इनमें शामिल थे:
- गिरफ्तारी के समय व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारण की जानकारी तुरंत और उसकी समझ में आने वाली भाषा में दी जाए।
- गिरफ्तारी के बाद पुलिस रजिस्टर में रिकॉर्ड किया जाए।
- गिरफ्तारी की सूचना तुरंत किसी परिचित व्यक्ति या परिवार को दी जाए।
- गिरफ्तार व्यक्ति को वकील से मिलने का अधिकार हो।
- हिरासत में होने वाले व्यक्ति की नियमित मेडिकल जांच हो।
यह फैसला भारत में पुलिस हिरासत के दौरान होने वाली कठोरता को रोकने और मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसके बाद कानून प्रवर्तन एजेंसियां इन दिशानिर्देशों की पालना करने के लिए बाध्य हो गईं जिससे कस्टोडियल उत्पीड़न और मौतों में कमी आई
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